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डॉ. मुरली मनोहर जोशी

डॉ. मुरली मनोहर जोशी का जन्म 5 जनवरी 1934 को हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा हिंदू हाई स्कूल चांदपुर से प्राप्त की और उच्च शिक्षा के लिए मेरठ कॉलेज और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राप्त की है जहां अपने कई शिक्षकों के द्वारा प्रेरित किए जाने पर वह स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुए।

तिलक की गीता रहस्य का उनपर काफी प्रभाव था। आरएसएस के कई बड़े नेता जैसे गुरुजी गोलवलकर, दीनदयाल उपाध्याय और प्रॉफेसर राजेन्द्र सिंह ने मुरली मनोहर जोशी की राजनीतिक समझ विकसित करने में काफी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। स्पैक्ट्रोस्कोपी में विशेषज्ञता हासिल करने पर उन्हें इलाहाबाद विश्वविद्यायल द्वारा पीएचडी की डिग्री और डॉक्ट्रेट की उपाधि से नवाजा गया था। अपने 4 दशक से अधिक के राजनीतिक जीवन में डॉ. जोशी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अपनी शैक्षणिक गतिविधियों को जारी रखा।

फिजिक्स विभाग के विभागाध्यक्ष और प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त होने से पहले डॉ. मुरली मनोहर जोशी जी ने अपने कई विद्यार्थियों को विज्ञान की पढ़ाई के लिए प्रेरित किया। डॉ. जोशी ने भारत में तीन मंत्रालयों को जिम्मा संभाला है - मानव संसाधन विकास मंत्रालय, विज्ञान एवं तकनीक और समुद्री विकास। यह बतौर कैबिनट मंत्री उनका दूसरा कार्यकाल रहा। इससे पहले 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार के दौरान वह केन्द्रीय गृह मंत्री थे।


उपलब्धियां

डॉ. जोशी आधुनिक, मजबूत और विविधतापूर्ण भारत के काफी प्रशंसक हैं। अपने शुरुआती दिनों से वह इस बात में विश्वास रखते हैं कि भारत को परमाणु पावर होना चाहिए। उन्हें कई बार बतौर जनसंघ नेता, जनता की राय को ठेस पहुंचाने और भड़काऊ भाषण देने व दंगे भड़काने के आरोप में गिरफ्तार किया भी किया जा चुका है।

1977 में आपातकाल के खत्म होने के बाद जोशी जी लोक सभा में निर्वाचित होकर पहुंचे और साथ ही संसद में जनता पार्टी के महासचिव बने।

डॉ. जोशी 1992-96 तक राज्य सभा में रहे जहां वह कई समितियों के सदस्य रहे, जैसे कि विज्ञान एवं तकनीक पर स्टैंडिंग कमिटी, पर्यावरण एवं वन, सिलेक्ट कमिटी ओन पेटेंट लॉ, सिलेक्ट ट्रेडमार्क आन ट्रेड मार्क बिल, स्टैंडिंग कमिटी आन फइनेंस, रक्षा सलाहकार समिति समेत कई अन्य समितियों में जोशी जी सदस्य रहे हैं। पैक (पब्लिक अकाउंट्स कमिटी के अध्यक्ष के तौर पर उन्होंने पहली बार सार्क देशों के पैक को बुलाकर सम्मेलन का आयोजन किया था।

स्वदेशी के लिए डॉ. जोशी की प्रतिबद्धता, आर्थिक मामलों पर उनकी पकड़ और विश्व व्यापार संगठन में भारत के पेटेंट रेजीम पर नए नजरिए के लिए जोशी जी ने काफी कार्य किया।

उन्होंने कई गैर-कांग्रेसी दलों के नेताओं के साथ मिलकर TRIPPS और GATT मामलों पर सासंदो का एक फोरम संगठित किया था। उसके संयोजकथे डॉ. जोशी व श्री चंद्रशेखर, श्री जॉर्ज फणनैनडीज, श्री अशोक मित्रा, श्री गुरूदास दासगुप्ता, श्री इंदरजीत गुप्ता और श्री जयपाल रेड्डी एवं अन्य नेता सदस्य के नाते दायित्वों का निर्वहन कर रहे थे।

इस आंदोलन ने विश्व कारोबारी संगठन के प्रति देश के रुख को तय करने में और विकसित देशों की चुनौतियों से निपटने में मदद की है। डॉ. जोशी ने 1966 में TRIPPS की एक बैठक की अध्यक्षता की थी।

मानव संसाधन मंत्री के तौर पर भी उन्होंने कई पुरानी चीजों को बदला और हर कन्या को स्नातक पर मुफ्त शिक्षा, सर्व शिक्षा अभियान, संस्कृत शिक्षा, मदरसों को आधुनिक और कंप्यूटर से लैस बनाना, उर्दू में शिक्षा को बढ़ावा देना, स्कॉलरशिप में इजाफा आदि में कई बदलाव उनके द्वारा लाए गए।

मानव संसाधन विकास और विज्ञान एवं तकनीक, दोनों ही विभागों में डॉ. जोशी द्वारा इंडिया इनोवेशन फंड, श्यामा प्रसाद फेलोशिप, स्त्री शक्ति पुरस्कार, महिला वैज्ञानिकों को विशेष पुरस्कार आदि शुरू की गई। राष्ट्रीय बाल फंड एक अहम स्कीम है। इसी तरह से किशोर वैज्ञानिक योजना भी एक अन्य स्कीम है।

इन प्रयासों से साक्षरता दर में इजाफा हुआ और सीधा 3 करोड़ लोग शिक्षित हुए, जिससे देश की साक्षरता दर में 65 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई।

डॉ. जोशी के नेतृत्व में कई ऐसे कदम उठाए गए जिनसे महिलाओं, अल्पसंख्यकों और कमजोर वर्गों को फायदा मिले, तेजी से इन प्रयासों को गति देने के लिए काम की प्रकिया में तेजी लाई गई। डॉ. जोशी प्रधानमंत्री की आईटी टास्क फोर्स के अध्यक्ष भी रहे हैं। उन्होंने इस कड़ी में 11 राजकीय स्तर के इंजीनियरिंग कॉलेजों को अपग्रेड करते हुए एनआईटी में तब्दील कर दिया और दाखिले की संख्या भी बढ़ा दी।

राजनीति में डॉ. जोशी का काफी अहम योगदान रहा। उन्होंने संस्कृति के मामले में भी काफी अहम योगदान दिया। उन्होंने महात्मा बुद्ध, खालसा पंथ, रामकृष्ण मिशन, संत ज्ञानेश्वर और छत्रपति शिवाजी से लेकर महात्मा गांधी और गालिब द्वारा दी गई शिक्षा को भी अलग-अलग तरह से पाठ्यक्रम में शामिल करने की नीति बनाई। 

एक राजनीतिक दार्शनिक के लिए डॉ. जोशी की जो सबसे बड़ी संपत्ति है, वह है उनकी साफ-सुथरी छवि। इतने शीर्ष पर पहुंचने के बाद भी वह जमीन से जुड़े व्यक्ति हैं। उनके जीवन में बिल्कुल बदलाव नहीं हुआ। वह अपने परिवार के साथ रहते हैं और काफी अच्छा जीवन व्यतीत कर रहे हैं। 

वैज्ञानिक होने के साथ ही वह काफी प्रख्यात विद्वान और कुशल राजनेता भी हैं। शायद विज्ञान के साथ उनका मिशन समाज से ही शुरू हुआ होगा। वह एक कुशल वक्ता हैं और उनके जैसा संगठनात्मक कौशल काफी कम लोगों में है। वह हिन्दी, उर्दू के साथ-साथ बांग्ला, पंजाबी, मराठी और गुजराती में भी कुशल हैं।

शुरुआती वर्ष

डॉ. जोशी महज 10 साल की आयु में आरएसएस से जुड़े। इसके बाद 1949 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में शामिल हुए और 1957 में जनसंघ में शामिल हुए। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में वह ऑल इंडिया जनरल सेक्रेटरी रहे। 

1987-90 में उन्होंने वैचारिकी नामक समूह की स्थापना की और इसके अलावा ज्ञान कल्याण चैरिटेबल ट्रस्ट और भाउ राव देवरस न्यास, माधव शोध संस्थान के पूर्णकालीन सदस्य हैं। डॉ. जोशी भारतीय जनसंघ के इलाहबाद जोन के कार्यवाहक सचिव रहे। भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. जोशी ने 1992 में गणतंत्र दिवस के दिन ऐतिहासिक एकता यात्रा कन्याकुमारी से श्रीनगर तक लक्षित की थी जिसका उद्देश्य लाल चौक पर झंडा फहराना था। इस घटना ने अयोध्या की घटना के साथ मिलकर देश के भविष्य पर एक गहरी छाप छोड़ी।

डॉ. जोशी ने अयोध्या के आन्दोलन में काफी अहम भूमिका निभाई थी। (राम जन्मस्थान पर मंदिर के निर्माण हेतु) उन्हें 8 दिसंबर 1992 को गिरफ्तार कर लिया गया और माता टीला पर लालकृष्ण आडवाणी और अशोक सिंघल के साथ अयोध्या मामले में गिरफ्तार किया गया। उनके जीवन में सबसे ज्यादा महत्व इलाहाबाद का है। उन्होंने 4 दशक से भी ज्यादा समय वहां दिया है। वह इलाहाबाद लोक सभा सीट से 3 बार लगातार जीते।

विश्व पटल पर

डॉ. जोशी को इकोलॉजी पर आधारित अंतरराष्ट्रीय अकादमी द्वारा सम्मानित किया गया। 2001 में रशियन नेशनल साइंस एकेडमी ऑफ नेचुरल साइंसेज द्वारा फेलो के लिए चयनित हुए। डॉ. जोशी पहले ऐसे भारतीय थे जो फेलो की सूची में चयनित हुए, जिसका चयन 24 नोबेल पुरस्कार विजेताओं की सदस्य वाली समिति करती है।

डॉ. जोशी को कानपुर, बनारस और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालयों द्वारा डीएससी की उपाधि से नवाजे जा चुके। डॉ. जोशी को नेशनल अकादमी ऑफ सांइस इलाहाबाद की ओर से सम्मानित किया गया। उन्हें 1999 में भारतीय साइंस कांग्रेस द्वारा जवाहरलाल नेहरु अवॉर्ड दिया गया। भारत मंगोलिया के रिश्तों में सहायक होने पर मंगोलिया के राष्ट्रपति द्वारा मित्रता मेडल प्रदान किया गया।

विदेशी दौरे

डॉ. जोशी ने 1977 में इंटर-पार्लियामेंट्री यूनियन कांफ्रेस में भाग लिया और 1991 में जर्मनी के फ्रैंकफर्ट में विज्ञान पर भाषण दिया। वॉशिंगटन में विश्व हिंदू कॉन्फ्रेंस और 1993 में स्वामी विवेकानंद के शिकागो में हुए भाषण की वर्षगांठ पर वह वहां मौजूद थे। 1993 में वॉशिंगटन में विज्ञान पर हुए अंतरराष्ट्रीय सेमिनार, 1993 में बनारस में विश्व हिंदू माहासंघ की संगोष्ठी, 1995 में डर्बन में हिंदू संगोष्ठी जहां उन्होंने भौतिक विज्ञान पर भाषण दिया।

डॉ. जोशी ने 1988 में सांस्कृतिक नीतियों पर अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में भाषण दिया था। 1988 में जिनेवा में वर्ल्ड फिलॉसफर मीट, विज्ञान, तकनीक और पर्यावरण पर आधारित 8वां बोस आइंस्टीन लेक्चर और संयुक्त राष्ट्र में महिलाओं पर यूएन कॉन्फ्रेंस, बच्चों पर आयोजित यूएन समिट न्यूयॉर्क 2002, यूनेस्को कॉन्फ्रेंस, सेंट पीटर्सबर्ग यूनिवर्सिटी इन सभी जगह हिस्सा लिया। उनके विचारों की कई लोगों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा की है। कॉमनवेल्थ साइंस काउंसिल के चेयरमैन डॉ. बेन गुबैंस ने डॉ. जोशी के दक्षिण अफ्रीका में दिए गए संबोधन को 'लैंडमार्क' बताया था। उन्होंने कहा कि वह उनके लेक्चर की एक कॉपी को सभी मंत्रियों के बीच बांटेंगे। भारत के पुनरुत्थान के पुरोधाओं में एक बड़ा नाम डॉ. जोशी का है। भारत की वैज्ञानिक, तकनीकी आत्मनिर्भरता की बात डॉ. जोशी काफी लंबे समय से करते आ रहे हैं। ऐसे में डॉ. जोशी की राजनीति के अंदाज ने पिछले 50 सालों में हर किसी को चकित किया।  

डॉ. जोशी ने इन रिर्सच प्रॉजेक्ट्स को सुपरवाइज किया

  1. Acoustical Behaviours of Solids at Elevated Temperature (CSIR, New Delhi).

  2. Transport properties of Solids (CSIR).

  3. Investigations in Instrumental Optics with Special Reference to Grating Optics (CSIR).

  4. Spectroscopic Investigations of Molecules of astrophysical Importance (CST U.P.).

  5. Two individual fellowships of CSIR, New Delhi.

  6. One individual Fellowship of Atomic Energy Establishment.

  7. One individual Fellowship of UGC, New Delhi.

  8. 'Scientific Perceptions of Ancient Indian Genius' A project sponsored by Deen Dayal Research Institute, New Delhi.

  9. Two individual (NET, UGC) Fellowship.

  10. One individual (NET, CSIR), Fellowship.

  11. One individual (RA, CSIR) Fellowship.

  12. Expert Adviser - One Young Scientist Scheme (DST). 

 

वैज्ञानिक, संसदीय एंव शैक्षणिक ईकाइयां जिनसे डॉ. जोशी जुड़े हुए हैं:

  1. Chairman Physics Committee in U.P. State Council of Science & Technology 1978.

  2. Member of the High Powered Committee (Justice Sikri Committee) for investigating into Railway accidents and suggesting measures for safety (1978-80).

  3. Member of the UGC panel on "The Role of Teachers in the Changing Educational Pattern" (1977-79).

  4. Member of the Consultative Committee on Science and Technology, Atomic Energy, Space and Electronics (1977-79).

  5. Member Governing Council of Indian Institute of Science, Bangalore (1977-79).

  6. Member of the Court of Jawahar Lal Nehru University, New Delhi (1977-79).

  7. Member of UP Education Committee a high powered Committee of UP Government on Developing Education (1968).

  8. Member UP Board of Education Committee of Courses in Physics (1971-75).

  9. Member of the Technical Committee AIR for UP (1974-76).

  10. Member, Governing Board of IISc, Bangalore (1977-79).