प्रेस वार्ता - संदीप शर्मा, प्रभारी किसान मोर्चा, पूनम चन्द्राकर, पूर्वप्रदेश अध्यक्ष, किसान मोर्चा
प्रेस वार्ता - संदीप शर्मा, प्रभारी किसान मोर्चा,
पूनम चन्द्राकर, पूर्वप्रदेश अध्यक्ष, किसान मोर्चा
मंडी शुल्क में 150% बढ़ोतरी करके भूपेश सरकार ने किसानों पर भारी वज्र पात किया है। शुल्क बढ़ोतरी के आदेश से ऐसा लगता है मानो पहले धान में लगने वाले शुल्क 2 रु को बढ़ाकर 5रु कर कर दिया गया है जबकि सच्चाई यह है कि 2018 में भाजपा की रमन सरकार के समय जिस धान के समर्थन मूल्य पर प्रति क्विंटल 31 रु शुल्क लगता था वहीं आज बढ़े हुए नए शुल्क के चलते अब धान समर्थन मूल्य पर अब 98 रु शुल्क लगेगा। जो कि 2018 की तुलना में तीन गुना से अधिक है। इसकी मार अन्तोगत्वा किसानों को ही पड़ती है।
मंडी शुल्क में बढ़ोतरी का दुष्परिणाम बढ़ोतरी के दूसरे ही दिन दिखने लगा जब मंडियों में 1450 से 1480रु तक बोली लगने वाले धान की बोली राजिम मंडी सहित तमाम मंडियों में 1000रु से शुरू किया जाकर 1250-1280 रु में रुक गई। मंडी शुल्क बढ़ने से मंडियों में धान के भाव अचानक 200रु नीचे आ गए हैं। इस बात से आक्रोशित होकर अनेक मंडियों में किसानों ने धान बेचने से मना कर दिया है।
उल्लेखनीय है कि मई जून 2018 में जब भाजपा की रमन सरकार थी और धान का समर्थन मूल्य 1570 रु लागू था तब किसानों अपना धान 1550 रु में बेच लिया था। लेकिन आज जब धान का समर्थन मूल्य 1960रु है तब किसानों को भूपेश सरकार की मंडियों में धान 1200- से 1300 रु क्विंटल में बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है। औऱ यह सब कृषि कानून रद्द होने के ही दुष्परिणाम हैं।
चर्चा में हमेशा यह कह गुमराह किया जाता है कि मंडी शुल्क तो व्यापारी देता है , किसान नही देता, जबकि सच्चाई यह है कि मंडी शुल्क किसानों के ही जेब से जाता है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है धान के दाम में अचानक 200रु की कमी आ जाना।
अब सवाल यह उठता है कि टेक्स 31 रु से बढ़कर 98 रु अर्थात 67 रु बढ़ा है तो धान के दाम 200 रु कम कैसे हो गए? क्या 133₹ अतिरिक्त को भूपेश टेक्स माना जाय? या इसे यूपी चुनाव के लिए जबरदस्ती का लिया गया योगदान माने? उत्तर प्रदेश में जाकर झूठी आत्म प्रशंसा करने वाले मुख्य मंत्री किसानों के जेब के पैसा से ही किसानों के बर्बादी का इबारत लिख रहे हैं। इस टेक्स वृद्धि से राज्य की सरकार केंद्र सरकार से 1000 करोड़ रुपये और राज्य के किसानों से 1000 करोड़ वसूलने के जुगत बना लिया है।
आज ही व्यापारियों ने मंडी शुल्क वापस करने ज्ञापन दिया है। उनका तर्क है कि बढ़े टेक्स के चलते प्रतिस्पर्धा में बने रहना मुश्किल है। प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए उन्होंने बोली 200₹ घटा दिया, मुख्यमंत्री जी का सम्मान भी कर दिया। किसान कहाँ जाएं? और इसी प्रकार के जंजाल के चलते राज्य में किसान आत्महत्या के लिए मजबूर हो रहे हैं। 550 से अधिक किसान आत्महत्या कर चुके, अपने खेत के पेड़ पर फांसी लगा कर आत्महत्या कर रहे हैं।
दूसरी तरफ धान खरीदी में किसानों के पंजीयन भी घटाए जा रहे हैं, किसानों से बारदाना की मांग की जा रही है। किसानों के 40-50रु वाले बारदाना (कट्टा) के मात्र 25 रु देने का वादा किया गया है। हजारों या कहें लाखों किसान के पिछले साल का भुगतान अभी भी नही हुआ है।
नमी का बहाना बनाकर किसानों के धान लौटाए जा रहे हैं वह अलग है। खासकर ऐसी शिकायत बस्तर संभाग से ज्यादा है जहां भोले भाले आदिवासी किसानों के साथ यह अत्याचार किया जा रहा है।
हम मांग करते हैं कि यह सरकार शीघ्र बढ़े हुए मंडी शुल्क वापस ले और मंडियों की अव्यवस्था दूर करते हुए मंडियों में हो रहे किसानों के शोषण पर लगाम लगाए, साथ ही साथ पंजीयन में हुए गड़बड़ी को सुधारते हुए समितियों में धान खरीदी व्यवस्था दुरुस्त करे।