भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी पर हमले की रची गयी खूनी साज़िश पर कांग्रेस को यही कहना चाहता हूं कि - आग लेकर हाथ में पगले जलाता है किसे, जब न ये बस्ती रहेगी, तू कहां रह पाएगा। इस साज़िश के विफल होने लेकिन मोदी जी की रैली के रद्द हो जाने के बाद आप सोश्यल मीडिया पर उपलब्ध कांग्रेस के नेताओं के ट्वीट्स देखें। सभी एक जैसे उत्साह में हैं। सभी जोश में हैं। कांग्रेस द्वारा इस कारवाई के लिये उपद्रवियों को बधाई दी जा रही है। कांग्रेस के किसी भी नेता के मूंह से इसके ख़िलाफ़ एक शब्द नहीं निकला है।
देश भर से जिस कांग्रेस का सफ़ाया हो गया, वह अब बौखलाहट में इस स्तर तक की चूक करेगी, सोच कर ही अजीब लगता है। इस घटना का जश्न मनाया जा रहा है। प्रधानमंत्री के साथ ही मुख्यमंत्री चन्नी के जाने का कार्यक्रम था लेकिन वे ऐन समय नहीं गए और कोरोना का बहाना बनाया। जबकि वे प्रेस करते रहे। इसी तरह नियम अनुसार डीजीपी और मुख्य सचिव को जाना होता है, उनकी रिजर्व गाड़ी भी थी काफिले में लेकिन, ऐन समय पर उन अधिकारियों का भी कार्यक्रम में शमिल न होना भी अनेक संदेह को जन्म देता है। 
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जिन्होंने प्रदेश का सारा संसाधन और समय कांग्रेस को सौंप दिया है उन्हें आज़ाद भारत में हुई ऐसी पहली घटना पर भी प्रतिक्रिया देने में पूरे चौबीस घंटे का समय लिया। फिर भी घटना की निंदा तक नहीं की। जबकि बक़ायदा इस मामले में कांग्रेस की एक राज्य सरकार देश के प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ साज़िश के कठघरे में खड़ी नज़र आ रही है।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी अभी गुप्त यात्रा पर हैं। पंजाब के कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने कहा भी है कि राहुल जी ‘गुप्त मीटिंग’ कर रहे होंगे। क्या यह हमला इसी गुप्त मीटिंग का परिणाम है?
खुद बघेल ने इससे पहले प्रधानमंत्री जी की यात्रा के दौरान सीएम के रूप में न केवल सामान्य प्रोटोकोल को तोड़ा था, बल्कि उनका मोदी जी से द्वेष, उनके बारे में अनर्गल और असभ्य बयानबाज़ी सार्वजनिक है।
इस उपद्रव में शामिल लोग निश्चित ही विस्फोटकों से लैस रहे होंगे इसका भी संदेह है और कुछ भी हो सकता था मोदी जी के साथ। उपद्रवियों ने एक पत्रकार की गाडी पर भी किसी संदिग्ध वस्तु से हमले किये थे, इसका मतलब है कि उनके पास बड़े से बड़े वारदात करने के हथियार रहे होंगे। अगर काफिले को वापस नहीं लिया जाता तो किसी भी बड़ी से बड़ी घटना से इनकार नहीं किया जा सकता था।
कांग्रेस के इस कृत्य ने पूरे देश को विश्व पटल पर अपमानित किया है। उपद्रवियों को आख़िर किसने बताया कि प्रधामनंत्री उस रास्ते से जाएंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी कभी ऐसी प्रतिक्रया नहीं देते जैसे उन्होंने कल दी, इसका अर्थ समझने की ज़रुरत है। फिरोजपुर में रैली के लिए जाते समय जो साजिश रची गई थी, वह बहुत संगीन थी। प्रधानमंत्री के दौरे का प्रोटोकाल होता है। सड़कों पर सुरक्षा होती है, जो राज्य सरकार की जिम्मेदारी होती है। लेकिन सड़कों पर तो उपद्रवी प्रदर्शनकारी थे। बस पुलिस नहीं थी और थी भी तो उपद्रवियों के साथ चाय पी रही थी। 
यह सब सोची-समझी साज़िश का नतीज़ा है, अचानक नहीं हुआ। प्रधानमंत्री के फ्लीट में भी जो पंजाब पुलिस थी, साइड खड़ी हो गए. ऐसे में बस एसपीजी के जवानों के हाथ में उनकी सुरक्षा थी... एसपीजी के जवानों को वो अस्त्र-शस्त्र निकालने पड़े, जो शायद ही कभी किसी ने इनके हाथ में देखे हों, साजिश बहुत बड़ी थी।
पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और हमेशा कांग्रेसी रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी कांग्रेस से इस्तीफा देते समय साफ़ तौर पर कहा था कि ‘राज्य में बहुत मुश्किल से मिली शांति और विकास को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए। अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर घटनाक्रमों को लेकर पीड़ा व्यक्त की थी। उन्होंने अपने पत्र में इस बात को लेकर चिंता जताई कि इन घटनाक्रमों से राज्य में अस्थिरता आ सकती है। कैप्टन की आशंका सच साबित हो रही है और पंजाब समेत देश को आतंक की आग में झोंकने के लिए बड़ी साज़िश हो रही है, इसमें अब रत्ती भर संदेह नहीं है। भाजपा सीएम बघेल से पूछना चाहते है कि क्या उन्हें ऐसी घटना की निंदा करने के बदले इस पर लीपापोती करना चाहिए?